देश में इस समय ज्यादातर राज्यों में राजनीतिक दलों (Political Parties) की ओर से मुफ्त में सुविधाएं दिए जाने का चलन जोर पकड़ चुका है, हालांकि इस बढ़ती प्रवृत्ति के खिलाफ विशेषज्ञों ने निराशा जताई और आगाह किया कि ऐसा चलता रहा तो देश बड़े आर्थिक संकट (Economic Crisis) में फंस जाएगा. अब राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त में चीजें बांटने के वादों पर राजनीतिक पार्टी की मान्यता रद्द करने का मामला देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में पहुंच गया है.
चुनान से पहले या चुनाव के बाद मुफ्त में चीजें या सुविधाएं देने का वादा करने वाली पार्टियों की मान्यता रद्द किए जाने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग ने हलफनामा दाखिल किया है. चुनाव आयोग का कहना है कि इस तरह के फ्री में चीजें देने का वादा करना राजनीतिक दलों का नीतिगत निर्णय है. इन वादों पर राजनीतिक दलों का पंजीकरण रद्द करने की शक्ति चुनाव आयोग के पास नहीं है. यह याचिका बीजेपी नेता और एडवोकेट अश्विनी कुमार उपाध्याय की ओर से डाली गई है.
खुद जनता को सोचना चाहिएः चुनाव आयोग
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग ने कहा कि खुद जनता को सोचना चाहिए कि ऐसे वादों से देश की अर्थव्यवस्था पर क्या असर होगा. निर्वाचन आयोग ने यह भी कहा कि राजनीतिक दल द्वारा चुनाव से पहले या बाद में किए जाने वाले मुफ्त वादों की पेशकश या बांटना संबंधित राजनीतिक दल का नीतिगत निर्णय है. इन वादों को लेकर राजनीतिक दल के पंजीकरण को रद्द करने की शक्ति हमारे पास नहीं है.
चुनाव आयोग ने यह भी कहा कि राज्य की जनता को इस पर फैसला लेना चहिए कि क्या ऐसे फैसले आर्थिक रूप से सही हैं या अर्थव्यवस्था पर कितना प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा. आयोग ने कहा कि चुनाव आयोग राज्य की नीतियों और निर्णयों का विनियमन नहीं कर सकता है जो विजयी दल द्वारा सरकार बनाने पर लिए जा सकते हैं.